भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कटे न पाश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

11
मुस्कानें मरी
हँसी गले में फँसी
बधिक -पाश
12
कटे न पाश
खुशियाँ हुई कैद
पंख भी कटे।
13
प्राण हुए हैं
अब बोझ -से भारी
चले भी आओ।
14
कैसा मौसम!
झुलसी हैं ऋचाएँ
असुर हँसें।
15
उर -पाँखुरी
झेले पाषाण -वर्षा
अस्तित्व मिटे।
16
ईर्ष्या सर्पिणी
फुत्कारे अहर्निश
झुलसे मन।
17
कहाँ से लाएँ
चन्दनवन -मन !
लपटें घेरे।
18
अश्रु से सींचे
महाकाव्य के पन्ने
रच दी नारी ।
19
मन नहीं बाँचा
अन्धे असुर बने
रक्त -पिपासु ।
20
दर्द जो पीते
व्यथित के मन का
सुधा न माँगे।