Last modified on 25 नवम्बर 2011, at 09:29

कटे हाथों वाली लाश / अशोक कुमार शुक्ला

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:29, 25 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला |संग्रह=कविता का...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मै ठिठक कर रुक गया

मंदिर के आहाते में

आज फिर एक लाश मिली थी

तमाशबीन

लाश के चारों ओर खडे थे

नजदीक ही कुछ

पुलिसवाले भी खडे थे

उत्सुकतावश मै भी शामिल हो गया तमाशवीनों में

देखा कटे हाथों वाली वह लाश

औधे मुॅह पडी थी

नजदीक ही उसके कटे हाथ पडे थे

जिसकी मुट्ठियॉ

अभी तक भिंची थी

न मालूम क्रोध से अथवा विरोध से

भीड का एक आदमी

चिल्ला चिल्लाकर बता रहा था

आज दूसरा दिन हुआ है

मंदिर को खुले और

हिंसा फिर होने लगी है

मुझे उसकी बात पर हॅसी सी आयी

तभी पुलिसवाले ने मेरी तरफ निगाह घुमायी

और बोला मिस्टर! तुम जानते थे इसे?

मैने कहा- जी नहीं,

तभी दूसरे ने लाश को

पलट दिया

लाश का चेहरा देखते ही मै सकपका गया

खून से लिपटी

कटे हाथों वाली वह लाश

किसी और की नहीं

मेरी अपनी ही तो थी?