Last modified on 7 जून 2014, at 15:26

कठिन समय में / सुशान्त सुप्रिय

बिजली के नंगे तार को छूने पर
मुझे झटका लगा
क्योंकि तार में बिजली नहीं थी

मुझे झटका लगा इस बात से भी कि
जब रोना चाहा मैंने तो आ गई हँसी
पर जब हँसना चाहा तो आ गई रुलाई

बम-विस्फोट के मृतकों की सूची में
अपना नाम देख कर फिर से झटका लगा मुझे :
इतनी आसानी से कैसे मर सकता था मैं

इस भीषण दुर्व्यवस्था में
इस नहीं-बराबर जगह में
अभी होने को अभिशप्त था मैं ...
जब मदद करना चाहता था दूसरों की
लोग आशंकित होते थे यह जानकर
संदिग्ध निगाहों से देखते थे मेरी मदद को
गोया मैं उनकी मदद नहीं
उनकी हत्या करने जा रहा था

बिना किसी स्वार्थ के मैं किसी की मदद
कैसे और क्यों कर रहा था
यह सवाल उनके लिए मदद से भी बड़ा था

ग़लत जगह पर सही काम करने की ज़िद लिए
मैं किसी प्रहसन में विदूषक-सा खड़ा था