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कठिन हँसी सी दुख की कुटिया / महेश आलोक

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कठिन हँसी सी दुख की कुटिया।खूब प्रशस्ति मिली उसको पर
दुख के मन की खाली पटिया
यह क्यों है यह दुख ही जाने

चिर यौवन उसकी पीड़ा है
कभी-कभी लगता है जैसे हमसे अधिक वही बूढ़ा है
इस भ्रम से दुख भी परिचित है

क्या बोला ऐसा वैसा है।इतना गजब न ढाओ भइया
दुख सचमुच दुख के जैसा है
छोड़ो ये बातें टेढ़ी हैं
 
कितने कठिन समय में हम हैं
दुख के जनपद में खुद दुख का लगता कहीं वजन कुछ कम है
अब दुख के दुख को क्या छेड़ें

दुख की भी अपनी लीला है
यह क्यों है यह दुख ही जाने