Last modified on 13 मई 2014, at 16:49

कठै गया वै बोलणा ! / महेन्द्र मील

उठ झांझरकै जद मां झरमर चाकी झोवती,
बीं झरमर री लोरी ऊपरां
म्हानैं नींद भलेरी आवती।
कठै गया वै झरमर बोलणा
अर कठै गया वै चाकी पीसणा!
घाल बिलोवणो जद मां झगड़-मगड़ बिलोवती,
वा झगड़-मगड़ री बोली
म्हारै हिवड़ै घी-सो घालती।
कठै गया वै झगड़-मगड़ बोलणा
अर कठै गया वै बिलोवणा, बिलोवणी!
 
बैठ रसोवड़ा मांय जद मां ढब-ढब खाटो औळती,
वा ढब-ढब री बोली म्हारै कानां मिसरी घोळती।
कठै गया वै ढब-ढब बोलणा
अर कठै गया वै खाटा ओलणा!
सांझ पड़्यां जद मां पट-पट सोगरा बणावती
वा पट-पट री वाणी म्हानैं घणी ई चोखी लागती
कठै गया वै पट-पट बोलणा
अर कठै गया वै बाजरी रा सोगरा!
कठै गया वै बोलणा.....!