भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कढिकै निसंक पैठि जाती झुंड झुंडन में / दास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:25, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कढिकै निसंक पैठि जाति झुंड झुंडन में,
              लोगनि को देख दास आनंद पगति है
दौरि दौरि जहीं तहीं लाल करि डारति है,
              अंक लगि कंठ लगिबेको उमगति है
चमक झमक वारी,ठमक जमक वारी,
              रमक तमक वारी जाहिर जगति है
राम! असि रावरे की रन में नरन में--
              निजल बनिता सी होरी खेलन लगति है