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कणकणवासी / सरोज कुमार

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मन्दिर में मुझे कई बाते याद आई!
प्रणाम की मुद्रा में
शर्माजी का कुत्ता भी याद आ गया!

ईश्वर मुझे क्षमा करना!
वैसे, अगर तू कण-कण में व्यापत है
तो शर्माजी के कुत्ते में भी होगा
फिर कैसा अफसोस, उसके याद आने में!

हे कणकणवासी!
अगर तू कुत्ते नहीं हुआ,
तो पत्थर में भी तेरे होने का
कौन भरौसा!