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कतय सँ आनब नव उपकरण / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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कतय सँ आनब नव उपकरण
करब जेहिसँ अतिथिक सत्कार,
स्वागतक साधन नहि किछु आन
छाड़ि कय हृदयक नव उद्गार।
अध्यंहित भरल नयन हर्षाश्रु
भावहिक अक्षत चन्दन धूप,
करब करू जाकय से स्वीकार।
तर्क जल आनि विवेकक माटि-
सानिकय कयल जकर निर्माण,
बुद्धिहिक देल बाँटिकय टेम
जाहिमे भरलहुँ स्नेह अपार।
जरय से छोट छीन सन दीप
जकर द्युति हृदय-कुहरमे पैसि,
जगाबय अगजगमे आलोक
हरय अज्ञानक निविड़ अन्हार।
भावना पुष्पांजलिक स्वरूप
उपस्थित कय सकलहुँ श्रीमान
क्षमब पग पग पर भेल अभाव
थिकहुँ जेँ अपने करूणागार।