भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कथी लेॅ ऐल्हेॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:59, 30 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखी केॅ हमरा अकेलोॅ ,
तोंय कहोॅ कथी लेॅ एैल्हेॅ ।
भलेॅ ही तेॅ अन्हार छेलै
दुखोॅ के बसबार छेलै
नयन लोर के धार छेलै
काल केरोॅ मार छेलै
आवी गेल्होॅ फेरू केनां
आग बंशी के बजैलेॅ ।

साँवरी साँझ रोॅ प्रीतम
जावेॅ लागलोॅ छै आबेॅ
ताल-ताल में खिललोॅ कमल
मुरझावेॅ लागलोॅ छै आवेॅ
संझवाती के लौ में बोलोॅ
पीड़ा बनी तोंय कैन्हें एैल्हेॅ ।

आबेॅ तेॅ सांझ-सबेरे आवै छोॅ
आशा रोॅ दीप जलावै छोॅ
विमल मीत के विमल प्रेम रोॅ
फेरु-फेरु आस जगावै छोॅ
दुख छै तेॅ बस अतन्है टा
तोंय छहाछत कैन्हेॅ न एैल्हेॅ ।