भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कद्दू पे बैठी दो बच्चियाँ / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा | |रचनाकार=शार्दुला नोगजा | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | <poem>रूप ले ले मेरा, रंग भी छीन ले | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | रूप ले ले मेरा, रंग भी छीन ले | ||
ये कमर लोच रख, ये नयन तीर ले ! | ये कमर लोच रख, ये नयन तीर ले ! | ||
वो जो कद्दू पे बैठी हैं दो बच्चियाँ | वो जो कद्दू पे बैठी हैं दो बच्चियाँ | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 34: | ||
पट खुले छोड़ दे! | पट खुले छोड़ दे! | ||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
00:04, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
रूप ले ले मेरा, रंग भी छीन ले
ये कमर लोच रख, ये नयन तीर ले !
वो जो कद्दू पे बैठी हैं दो बच्चियाँ
ओ उमर तू मुझे बस वहीं छोड़ दे !
बस समय मोड़ दे !
आ उमर बैठ सीढ़ी पे बातें करें
आंगनों में बिछे, काली रातें करें
फूल बन कर कभी औ’ कभी बन घटा
माँ से नज़रें बचा पेड़ पे जा चढ़ें !
आ ये पग खोल दे !
क्या तुझे याद है सीपियाँ बीनना
दूर से आम कितना पका चीन्हना
और चुपके से दादी के जा सामने
चाचियों का बढ़ा घूँघटा खींचना !
पल वो अनमोल दे !
वो जो भईया का था छोटा सा मेमना
उसकी रस्सी नरम ऊन ला गूंथना
बस मुझे तू वहीँ छोड़ आ अब उमर
चारागाहों में भाता मुझे घूमना !
पट खुले छोड़ दे!