भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कद्रू-बनिता / गढ़वाली लोक-गाथा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=गढ़वाली }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कदू्र कानाग ह्वैन, बनिता का गरुड़
कदू्र बनिता, दुई<ref>दोनों</ref> होली सौत,
सौति डाह छै, तौं मा।
कद्रू बोलदी तब-
हे भुली बनिता, तेरो बेटा भानपँखी,
रंद सूर्य कालोक माँग<ref>में</ref>-
सूर्य भगवान को रथ चलौंद।
बोलदऊँ हे भुली,
सूर्य को रथ, कै रंग को होलो?
तब बनिता बोलदे,
सूर्य को स्वेत रथ होलो।
तब नागूना<ref>नागों</ref> की माता कना बैन बोदे-
आज भुली बनिता, तेरा मेरा बीच,
कौल<ref>शर्त</ref> होई जाला
मैं सणी तू भुली, धरम दीयाल।
सूर्य को सफेद रथ होलो,
तब मैं, तेरीदासी होई जौलो।
अर कालो रथ होलो तब तू,
मेरी दासी, बणी जालो।
तब कौल-करार, करीगे नागू की माता,
रोंदड़ा<ref>रोने</ref> लगौंदी<ref>लगी</ref> तब, छुँयेड़ा<ref>सोचने लगी</ref> चारदे,
मन मारीक अपणा, कालागिरि नाग।

याद करके वा, ध्यान धरदे।
तब औंद कद्रू को, कालागिरी नाग
अपनी माता का, चरणू मा गिर्दु<ref>पड़ता</ref>
क्या हालू माता, मैं कू तै हुकूम,
केक याद करयूँ, त्वैन मैंई।
माता तब बाच<ref>आवाज</ref>, नी गाड़दी<ref>निकालती</ref>।
कालागिरि तब, सोच मा पड़ीगे-
क्या ह्वै माता, इनी होणी होन्यार।
तब कदू्र बोलदे, क्या होण बेटा,
आज बिटे मैं, गरूड़ की माँ की दासी छऊँ।
कालागिरी पूद-क्या कारण होलो?
कदू्र न बोले-मेरा अर बनिता का बीच,
बचन होई गैन-
गरुड़ की माँन बोले, सफेद रथ सूर्य को,
मैंन बोले सूर्य को काली रथ होलो।
सफेद रथ सूर्य को सची होलो
तब मेरा लाडा<ref>बच्चे</ref>, भोल<ref>कल</ref> बिटे<ref>से</ref>-
मैन गरुड़ की माँ की, दासी होई जाण।
बनिता होली कनी स्या डैणा<ref>डायन</ref>,
वीं की दासी, कनु होण बेटा, मैन?
कालागिरि बोद: हे मेरी माता,
नागू की माता छई तू,
बनिता तेरी मैंदासी बणौलू।
मैं अभी अपणा, सभी नागू बोलदौं
ऊँ सणी स्वर्ग लोक भेजदौं।
उदंकारी<ref>उदयाचल</ref> काँठा माँग<ref>में</ref>,
जै वक्त सूर्य को, रथ औलू,
वै वक्त सब, अपणा नागू।

सूर्य का अग्वाड़ी पिछाड़ी, खड़ा करी द्यू लो
नागू का छैल<ref>छाया</ref> से, सूर्य को रथ,
कालो होई जालो।
तब मेरी माता, बनिता देखली,
सूर्य को रथ, कालो ही कालो?
कालागिरि नाग, तब नागू लीक,
उदंकारी काँठा, पौंछी गए?
उदैकाल माँ नागून,
सूर्य को रथ घेरयाले?
गौ सरूप पृथी, सूती बिजीगे
पृथी मा सूर्य को, झलकरो ऐगे?
अँध्यारी पृथी, उयंकार होइगे,
तब निकलदे भैर<ref>बाहर</ref>, नागू की माता,
सूर्य की तरफ देखण लगदी-
सूर्य का रथ की काली छाया,
तब देखेण लगदी।
तब लौंदी धावड़ी<ref>आवाज</ref>, कदू्र खुशी माँग-
औ भुलि बनिता, देख सूर्य को रथ!
कालो रथ छ त, तू मेरी दासी ह्वैजा,
सफेद रथ छ त, मैं तेरी दासी ह्वै जौलू।
तब गरुड़ की माता, देखदे सूर्य को रथ।
सूर्य कारथ तैन, काली छाया देखे
तब बोलदे बनिता-
आज बिटी दीदी कदू्र मैं, तेरी दासी बणीग्यूँ।
तब ह्वैगे बनिता, नागू की दासी।
तब दणमण<ref>टपटप आँसू गिराने लगी</ref> रोंदे, पथेणा नेत्र धोलदे।
जना कना<ref>जैसे-तैसे</ref> बेटऊँ, चुली<ref>से</ref> तनी रणू भलो।

मेरा बेटा भानपंखीन मेरो अपमान कराये।
मैं मँूग<ref>से</ref> त बोले सफेद रथ सूर्य को,
अैर दखा त कालो रथ देखंद।
मैं कौल<ref>शर्त</ref> हारी करेऊं, दासी बणायूं।
तब गरुड़ की माता,
मन मारी, जी हारी, नखारो सांस लेंदे।
तब वीं को बेटा मिश्री गरुड़,
रंद देवलोक मा भगवान मा बोद:
मैं घर जाँदू मेरी माँ पर क्वी कष्ट आई गए।
रौंड़दो दौड़ो औंद माँ का पास।
वै की मान औंदो दखी,
तब वीन पीठ फरकाई दीने।
मिश्री गरूण माँ का चरणू मा गिर्द।
कद्रू माता दणमण रोंदे-
इनो बेटा नी होंदो मेरो,
तब त मैं खूब रदी!
तब मिश्री गरुड़ बोद-
क्या होई माता होणी होन्यार?
तब माता बोदे: तेरा भाई भानपंखीन
मई माक झूठ बोले-
कि सूर्य को रथ सफेद होंद!
मैन नागू की माता दगड़े कौल करीन
आज ऊँकी दासी बणी गयूं।
तब मिश्री गरुड़ बोलदो-
धीरज धर माता, मैं अपणो जायो<ref>बेटा</ref> नी बोली,
जू मैन त्वै छुड़ायो नी।
तब रौड़दौ-दौड़दो वो जांद
कालागिरी नाग का पास-
हो कालागिरी नाग, तिन कपट करी
मेरी मां दासी किलै बणाये?
तब कालागिरी नाग इनो बोलदो-
हे मिश्री गरुड़ तू देवलोक मां रंदी
बख बिटी अमिर्त को घड़ो लैक हमू दियाल,
तेरी माता सणी हम छोड़ी दिऊला।
मिश्री गरुड़ होलो दिल को भोलो,
तब अमृत ल्याईक गरुड़ नाग देन्द।
तब कालागिरि नागन सब नाग बोलैन-
नहेक-धुयेक औला, अमृत प्यूला।
तब नाग नहेण धुयेण जांदन,
भगवान सुँणदन, दौडदा-दौड़दा ऐग्या-
गरुड़, तिन यो क्या करे?
जनो कपट ऊन त्वैक करे,
तनो कपट तू भी ऊँक कर!
जबारेक वो नहेक औंदन,
तबारेक अमृत देवलोक धरी हौऊ।
तब मिश्री गरुड़ अमृत उठैक,
सुकीं<ref>चुपचाप</ref> देवलोक मां धरी आयें
तब औंदन नाग ऐन, ऊन अमिर्त नी पायो।
तब कालागिरी मिश्री गरुड़ मू औंद।
तब मिश्री गरुड़ का साथ माँज,
कालागिरी नाग जुद्ध करण लै गये।
मिश्री गरुड़न तब नाग मारयालीन,
तब कालागिरी नाग अकेलु रै गये:
तब कालागिरी नाग गरुड़ की डर,
मिश्रीदऊ मा घुसीगे।
तब माछी बणीक वो छाला आई गये,
तब मिश्री गरूड़न वा माछी मारी आले,

वख एक रिषी तप कदो छयो,
वीं माछी को खून वे रिषी का अंग पड़ीगे!
वै रिषीन गरूड़ सराप दियाले-
जनो तिन मेरो तप भंग करे,
तनी तेरी ये कुंड माज<ref>में</ref> छाया पड़न से मृत्यु होई जान!
जनो रिषीन सराप दिने गरुड़ सणी,
तनी भगवान मालूम होई गये।
भगवानन तब गरूड़ को कुंड मा,
घूमणो बद करी दीने!
तब भगवान जी कालानाग नाथीक,
भैर ली ऐन!
तुम भाई भाई छया गरुड़ो नागो,
अपस मा मेल से रवा।
तब मिश्री गरूड़क भगवान न बोले:
तू सिर्फ मैना<ref>महीना</ref> राक एक नाग खाई।

शब्दार्थ
<references/>