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कन्हैया लाल पण्डित / परिचय

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कन्हैया लाल पण्डित का जन्म बिहार राज्य के रोहतास जिले के भलुनीधाम नामक ग्राम में 15 अक्टूबर 1943 को हुआ। भलुनीधाम स्थित माता यक्षिणी भवानी का मंदिर अत्यंत प्राचीन है तथा ऐसी मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं देवराज इन्द्र के द्वारा की गई। पराशक्ति माँ दुर्गा के यक्ष जाति की कन्या का रूप ग्रहण कर देवताओं के गर्व ध्वंस की कथा देवीभागत पुराण में भी आती है। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि जिस सिद्धस्थल की चर्चा रामायण में की गई है वह भी वास्तव में भलुनीधाम ही है तथा महर्षि विश्वामित्र ने भलुनी धाम के जंगलों में ही अपने विविध यज्ञों को संपन्न किया था। आज भी मंदिर के पास ही विश्वामित्र कुण्ड तालाब के रूप में स्थित है। भलुनीधाम भगवान परशुराम तथा अनेक ऋषि-महर्षियों की तपःस्थली रही है। आज भी भलुनीधाम लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है।
 कन्हैया पण्डित जी के बाल्यकाल में ही उनकी माता श्रीमती जामवंती देवी का देहावसान हो गया, हालांकि उनकी बड़ी माँ श्रीमती फूलवासो देवी ने उन्हें माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। पण्डित जी के पिताजी स्व। गंगादयाल पण्डित माता यक्षिणी के अनन्य साधक थे जिनके भक्ति की छाप कन्हैया लाल पण्डित पर अक्षरश: दिखाई देती है। पण्डित जी के आध्यात्मिक गुरु उच्चतम कोटि के सिद्घ संत स्वामी विमलानंद सरस्वती थे। स्वामी विमलानंद सरस्वती का समाधि मंदिर भलुनीधाम से सटे जटहा स्थान, नटवार में स्थित है। अपने पिता व गुरु के सान्निध्य ही संभवतः वे कारण रहे हों जिससे उनकी रचनाओं में भक्ति की प्रधानता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
 पण्डित जी अपने युवाकाल से ही अपनी मातृभाषा भोजपुरी तथा हिन्दी में कविताएँ, कहानियाँ व भजन आदि लिखते रहे हैं। कविता के जो मानक अनुशासन व अन्य बौद्घिक कसौटियाँ मानी जाती हैं, उनके बंधन में उनकी कविताएँ नहीं हैं। जिस प्रकार भक्ति कोई बंधन नहीं है उसी प्रकार कवि की कविताएँ भी किसी प्रकार के काव्य-सौंदर्य जैसे 'विमर्श' से बंधी नहीं है। भाव-सौंदर्य से गुंथी उनकी कविताएँ एक भक्त और दास की अपनी अराध्या से भावों की निश्छल अभिव्यक्ति है।
भोजपुरी साहित्य के विकास में पण्डित जी के योगदान को युग युगांतर तक याद किया जाएगा। पण्डित जी द्वारा स्थापित श्री यक्षिणी भोजपुरी साहित्य समिति अपने स्थापना काल (6 अक्टूबर 1981) से ही भोजपुरी साहित्य साधकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। समिति द्वारा आज भी प्रत्येक वर्ष कवि सम्मेलन व साहित्यिक गोष्ठियाँ संपन्न कराई जाती हैं तथा 'माई के बोली' नामक भोजपुरी पत्रिका प्रकाशित होती है। श्री पण्डित जी साहित्य व समाज की सेवा में आज भी सक्रिय हैं तथा उनके प्रयासों व जन सहयोग से भलुनीधाम का विकास निरंतर हो रहा है। इसी क्रम में वहाँ के जंगल का संरक्षण संवर्धन तथा पुस्तकालय भवन का निर्माण कार्य प्रगति में है। भलुनीधाम के जंगल के संरक्षण व संवर्धन हेतु प्रयासरत श्री पण्डित जी को तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री, बिहार, श्री सुशील कुमार मोदी द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।