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कपास / अरुण देव

कपास का सर्दियों से पुराना नाता है
जब हवा बदलती है अपना रास्ता और
पहाड झुक जाते हैं थोड़े से

दो पत्तों के बीच वह धीरे से मुस्करा देती है
जैसे पहाडों की सफेदी पिघलकर उसमें समा गयी हो

सर्दियो के आने से पहले आ जाते हैं कपास के उड़ते हुए सन्देश
और आने लगती हैं धुनक की आवाजें

धुनक के तारों से खिलती है कपास
गाती हुई सर्दिओं के गीत
एक ऐसा गीत जो गर्म और नर्म है
दोस्ताना हाथ की तरह.