Last modified on 27 जुलाई 2013, at 10:11

कपिल वस्तु का राजहंस / तलअत इरफ़ानी

तुम इक तयशुदा रास्ते पर थे लेकिन,
लगातार यक्सा बलंदी पे उड़ना खतरनाक था,
और तुम अपनी परवाज़ में इस कदर मुब्तला हो चुके थे
कि सम्तों की पहचान के साथ ही साथ दूरी का अहसास भी खो चुके थे
बयक वक्त उस कैफियत में तुम्हारा
कई आलमों से गुज़र हो रहा था,
मगर तुमने सोचा न था सामने से
उफ़ुक दर उफ़ुक आइना आइना मुख्तसर हो रहा था,

तभी मैं तुम्हें रोक कर कुछ कहूं
पेश्तर इसके इक तीर आकर तुम्हारे परों में समाया
शिकारी तुम्हारे तअकुब में भागा,
बहुत दूर तक भाग कर साथ आया,
फ़ज़ा में उसी तीर की अभी तक सनसनाहट हेई तारी,
कि जिस से बंधा हांफता है शिकारी ।
बलंदी से गिरता हुआ कतरा कतरा लहू कौन रोके ?
ज़मीं फिर भी शाना ब शाना तुम्हे
अपनी आगोश का वास्ता दे रही है
"उतर आओ ! अब और उड़ना मुनासिब नही"
यह सदा दे रही है।

मगर तीर की नोक पर यूँ टिके
जान के खौफ को तुम मयस्सर न होना।
यहाँ से ज़रा दूर नीचे खड़ा
वरना सिद्धार्थ तुम को नही पा सकेगा
परों से तुम्हारे वो जब तक
न इस तीर तो खेंच कर अपनी हाथों से निकाले
अहिंसा की उस को नज़र कौन देगा?
कपिलवस्तु का शहजादा,
बिलाखिर
यहीं से निकल कर तो गौतम बनेगा !

(आंजहानी श्रीमती इंदिरा गांधी की शहादत के बाद भारत के नाम)