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"कफ़न बाँधे हुए सर पर निकल आये दिवाने फिर / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | मिटा देंगे तेरे जुल्मो सितम के सब निशाँ पल में | ||
+ | यक़ीनन लौट आयेंगे हमारे दिन सुहाने फिर | ||
+ | हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पूछेंगी कल हम से | ||
+ | तो क्या ढूँढेंगे अपनी बुज़दिली के हम बहाने फिर | ||
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+ | अगर हम एक हो जायें दरिंदे क्या ठहर सकते | ||
+ | यहाँ से भागने के वे तलाशेंगे बहाने फिर | ||
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+ | हमारी लड़कियां, लड़के हमारे हों सभी बेखौफ़ | ||
+ | मशालें ले के हम निकलें अंधेरों को मिटाने फिर | ||
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+ | शिकारी होश में आ जा परिेंदों की सुन आवाजें | ||
+ | तेरा अंजाम क्या होगा न आयेंगे बताने फिर | ||
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14:43, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
कफ़न बाँधे हुए सर पर निकल आये दिवाने फिर
लबों पे इन्क़लाबी जोश के होंगे तराने फिर
मिटा देंगे तेरे जुल्मो सितम के सब निशाँ पल में
यक़ीनन लौट आयेंगे हमारे दिन सुहाने फिर
हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पूछेंगी कल हम से
तो क्या ढूँढेंगे अपनी बुज़दिली के हम बहाने फिर
अगर हम एक हो जायें दरिंदे क्या ठहर सकते
यहाँ से भागने के वे तलाशेंगे बहाने फिर
हमारी लड़कियां, लड़के हमारे हों सभी बेखौफ़
मशालें ले के हम निकलें अंधेरों को मिटाने फिर
शिकारी होश में आ जा परिेंदों की सुन आवाजें
तेरा अंजाम क्या होगा न आयेंगे बताने फिर