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कफ़न बाँधे हुए सर पर निकल आये दिवाने फिर / डी. एम. मिश्र

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कफ़न बाँधे हुए सर पर निकल आये दिवाने फिर
लबों पे इन्क़लाबी जोश के होंगे तराने फिर

मिटा देंगे तेरे जुल्मो सितम के सब निशाँ पल में
यक़ीनन लौट आयेंगे हमारे दिन सुहाने फिर

हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पूछेंगी कल हम से
तो क्या ढूँढेंगे अपनी बुज़दिली के हम बहाने फिर

अगर हम एक हो जायें दरिंदे क्या ठहर सकते
यहाँ से भागने के वे तलाशेंगे बहाने फिर

हमारी लड़कियां, लड़के हमारे हों सभी बेखौफ़
मशालें ले के हम निकलें अंधेरों को मिटाने फिर

शिकारी होश में आ जा परिेंदों की सुन आवाजें
तेरा अंजाम क्या होगा न आयेंगे बताने फिर