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कबीर दोहावली / पृष्ठ ४
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07:16, 6 अप्रैल 2013
कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खांड़ ।
सतगुरु की कृपा भई, नहीं तौ करती भांड़ ॥ 307 ॥
कबीर माया पापरगी, फंध ले बैठी हाटि ।
सब जग तौ फंधै पड्या, गया कबीर काटि ॥ 308 ॥
Sharda suman
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