Last modified on 8 मई 2011, at 22:21

कबूतर / नरेश अग्रवाल

तालाब सूख गये हैं गर्मी से
और ये कबूतर पानी भरी बाल्टी से
बुझा रहें हैं अपनी प्यास
अभी थोड़ी देर पहले ही
दाना खाया है इन्होंने
और उड़ रहे हैं मंदिर के चारों ओर ।

तपती धूप में चमकता है
मंदिर का गुम्बज
और कौओं के लिए
कोई भोजन नहीं यहाँ
ये कबूतर ही हमेशा दोस्त रहे मंदिरों के
कहीं न कहीं इनकी जगह है
दीवारों में रहने की
और ये सीधे-सीधे पालतू,
हाथ की अँगुलियों तक पर
बैठाया जा सकता है इन्हें ।