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कब तक छली जाओगी द्रौपदी / संतोष श्रीवास्तव

तुम समय सीमा से
परे हो द्रौपदी
द्वापर युग से अनवरत
चलते चलते
आधुनिक युग में
आ पहुंची हो

इतने युगों बाद भी
तुम अपनी मर्जी से
अर्जुन का वरण कहाँ कर पाती हो खाप अदालत का ख़ौफ़ तुम्हें
पुरुष सत्ता के आगे
बिखेर देता है
तुम बिखर जाती हो द्रौपदी

दुर्योधन की जंघा पर
बलपूर्वक बिठाई जाकर
रिश्तो की हार ,क्रूरता की जीत
देखने पर विवश हो द्रौपदी

गलता है तुम्हारा शरीर
आहिस्ता आहिस्ता
स्वर्ग की राह पर
एक प्रतिरोध गुजरता है
तुमसे होकर
पर तुम अपने इंद्रप्रस्थ
अपने पांचों पति ह्रदय में धारे
पूरी तरह
गल भी नहीं पातीं द्रौपदी

आज भी कितने समझौतों से
गुजरती हो तुम
तब बख्शी जाती है पहचान
आज भी क्रूरता का तांडव जारी है
चीर हरण का तांडव जारी है
अनचाहे रिश्तो का बोझ
आज भी ढो रही हो तुम
कब तक छली जाओगी द्रौपदी ?