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कब तक देगा धोखा मुझको / हरि फ़ैज़ाबादी

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कब तक देगा धोखा मुझको
रोज़ अधूरा सपना मुझको

सुख तूने क्यों दिया मुझे जब
देनी न थी सुविधा मुझको

हिम्मत जीने की देता है
यार तुम्हारा रोज़ा मुझको

राह सत्य की बतलाती हैं
सीता एवं गीता मुझको

काश हमेशा माँ की ममता
मिले बाप का साया मुझको

ख़ुदा उन्हें दे जीवन वर्ना
कौन कहेगा बेटा मुझको

जब से ज़िम्मेदारी आई
लगता सब कुछ अच्छा मुझको

मुझे रूलाया ख़ुद भी रोया
तब जाकर वह समझा मुझको