भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब तक सहेंगे ज़ुल्म रफ़ीक़ो-रक़ीब के / अदम गोंडवी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:33, 4 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदम गोंडवी |संग्रह=धरती की सतह पर /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कब तक सहेंगे ज़ुल्म रफ़ीक़ो-रक़ीब<ref>दोस्त-दुश्मन, मित्र-शत्रु</ref> के ।
शोलों में अब ढलेंगे ये आँसू ग़रीब के ।
इक हम हैं भुखमरी के जहन्नुम में जल रहे,
इक आप हैं दुहरा रहे क़िस्से नसीब के ।
उतरी है जबसे गाँव में फ़ाक़ाकशी की शाम,
बेमानी होके रह गए रिश्ते क़रीब के ।
इक हाथ में क़लम है और इक हाथ में क़ुदाल,
बावस्ता हैं ज़मीन से सपने अदीब के ।
शब्दार्थ
<references/>