Last modified on 22 अक्टूबर 2013, at 05:44

कब मिलिहें पियवा हमार निरमोहिया रे / महेन्द्र मिश्र

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:44, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कब मिलिहें पियवा हमार निरमोहिया रे,
कब मिहें पियवा हमार।
बइठल करीं हम मन मे गुनावन
चढ़ल जवनिया भइली भकसावन
ताना मारे सखिया हजार निरमोहिया रे,
कब मिलिहें पियवा हमार।
सोरहों सिंगार करी करिले सगुनवाँ
पिया नाहीं छोड़िहन अबकी फगुनवाँ
नइहर में नइखे गुजार निमोहिया रे।
कब मिलिहें पियवा हमार।
दिन रात बहेला नयनवाँ से पानी
तोरा बिना पियवा बेकार जिन्दगानी
काहे दिहलऽ सुधिया बिसार निरमोहिया रे,
कब मिलिहें पियवा हमार।
कहत महेन्द्र गोरी धीर धरऽ मनवाँ,
फागुन चढ़त अइहें तोहरो मोहनवाँ
मनवाँ के पूरी अरमान निरमोहिया रे।
कब मिलिहें पियवा हमार।