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कब सीखोगे तुम / स्वाति मेलकानी

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कब सीखोगे तुम...
खाली पन्नों पर लिखी
कविता पढ़ना।
मेरी आवाज का
नकाब हटाकर
अपने कानों को
मेरी खामोशी तक ले जाना
और सुनना
ठहरे पानी में
सदियों पहले डूब चुके
पत्थरों के
गिरने की अनुगूँज को।
कब सीखोगे तुम...
मेरी भटकी आँखों में
अपना पता लगाना।
पाँचों उँगलियों से बँधी
मेरी बन्द मुट्ठी के
ढीलेपन को समझ पाना।
मेरी सधी उड़ान के
कंपन को महसूस करना।
तेज रफ्तार से ढके
मेरे लड़खड़ाते पैरों को देख पाना।
कब सीखोगे तुम...
खौलते पानी में
उठते बुलबुलों से
मेरे हर आवरित झूठ के
तपे हुए
सच को पकड़ पाना।