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कभी खुशी कभी दर्द / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'

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कभी खुशी से कभी दर्द से दूरी है
जीना जीना नहीं सिर्फ़ मजबूरी है

बीता जीवन इच्छाएँ पूरी करते
पूरेपन की इच्छा मगर अधूरी है

'सत्यमेव जयते' सिद्धांत अनूठा है
सच में सच जीते यह कहाँ ज़रूरी है

कुछ अपनों के अधरों पर मुस्कान खिले
अपनी सासों की बस यह मजदूरी है

पोर–पोर महका है भीतर बाहर का
शायद मेरी नाभि जगी कस्तूरी है

मुस्कानों के फूल खिल गए यहाँ वहाँ
शायद 'यायावर' मौसम अंगूरी है