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कभी चलता हुआ चंदा कभी तारा बताता है / कुँवर बेचैन

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कभी चलता हुआ चंदा कभी तारा बताता है
ज़माना ठीक है जो मुझको बंजारा बताता है।

तुम्हारा क्या, तुम अपनी नींद की ये गोलियां खाओ
है गहरी नींद क्या, यह तो थका-हारा बताता है।

सँवारा वक़्त ने उसको, कि जिसने वक़्त को समझा
नहीं तो वक़्त क्या है, वक़्त का मारा बताता है।

ये आंसू हैं नमी दिल की, यही कहती रही दुनिया
मगर आंसू तो खुद को जल में अंगारा बताता है।

तज़ुर्बा मार्गदर्शक है, इसी से राह पूछेंगे
ये वो है, भूलने पर राह दोबारा बताता है।

सुनो साधो, कि इक साधे से सध जाती है सब दुनिया
किसी भी एक के हो लो, ये इकतारा बताता है।

नदी को मिलना था सो मिल गई जाकर समुन्दर से
भले ही ये जहाँ सारा, उसे खारा बताता है।

घरों में रहनेे वालों के , ये रिश्ते किस तरह के हैं
'कुँअर' इस बात को, कब ईंट या गारा बताता है।