भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी तो../ आईदान सिंह भाटी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>कभी तो भूलो बच्चों को भूगोल पढ़ाना हंसो गड़गड़ हंसी । हंसो ! जिस…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>कभी तो भूलो
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=आईदान सिंह भाटी
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>
 +
कभी तो भूलो
 
बच्चों को भूगोल पढ़ाना
 
बच्चों को भूगोल पढ़ाना
हंसो गड़गड़ हंसी
+
हँसो गड़गड़ हँसी
हंसो !
+
हँसो !
जिससे बज उठें हिये के तार ।
+
जिससे बज उठें हिय के तार ।
 
पहली बारिश से जैसे पनपते हैं
 
पहली बारिश से जैसे पनपते हैं
 
वर्षों से सूखे-थार में पुष्प पल्लव ।
 
वर्षों से सूखे-थार में पुष्प पल्लव ।
तुम्हारे हंसते ही
+
 
हंसने लगेगा
+
तुम्हारे हँसते ही
 +
हँसने लगेगा
 
चूल्हे पर तपता तवा
 
चूल्हे पर तपता तवा
 
और तवे पर सिकती हुई रोटी ।
 
और तवे पर सिकती हुई रोटी ।
तुम्हारे हंसते ही
+
तुम्हारे हँसते ही
 
खिल उठेंगे
 
खिल उठेंगे
 
बेलों पर फूल ।
 
बेलों पर फूल ।
 
खेजड़ों पर मिमंझर
 
खेजड़ों पर मिमंझर
और बच्चों की आंखों में भूगोल
+
और बच्चों की आँखों में भूगोल
(जरूरत नहीं रहेगी फिर तुम्हें भूगोल रटाने की)
+
(ज़रूरत नहीं रहेगी फिर तुम्हें भूगोल रटाने की)
 +
 
 
कभी तो बनाओ
 
कभी तो बनाओ
 
मन को चिड़िया
 
मन को चिड़िया
 
जंगल का विहाग
 
जंगल का विहाग
घर आंगन की गौरैया ।
+
घर आँगन की गौरैया ।
 +
 
 
उड़ो आकाश में
 
उड़ो आकाश में
ऊंचे और ऊंचे
+
ऊँचे और ऊँचे
 
बताओ बच्चों को आकाश और
 
बताओ बच्चों को आकाश और
ऊंचाई का अर्थ ।
+
ऊँचाई का अर्थ ।
कभी ‘फ्लैट’ की पांचवीं मंजिल में
+
कभी ‘फ्लैट’ की पाँचवीं मंज़िल में
 
बच्चों के सामने बन जाओ ऐसे
 
बच्चों के सामने बन जाओ ऐसे
 
जैसे हुड़दंग करते थे बचपन में
 
जैसे हुड़दंग करते थे बचपन में
 
फससों और चौपालों पर ।
 
फससों और चौपालों पर ।
भूलो कभी तो कुछ जरूरी बातें
+
 
 +
भूलो कभी तो कुछ ज़रूरी बातें
 
बदलो पुरानी पुस्तकों के पन्ने
 
बदलो पुरानी पुस्तकों के पन्ने
 
पढ़ो वह आखर माल
 
पढ़ो वह आखर माल
 
जिसके नीचे कभी खींची थी लकीरें ।
 
जिसके नीचे कभी खींची थी लकीरें ।
 
(लकीरें जिनमें छुपे हैं उस समय के अर्थ)
 
(लकीरें जिनमें छुपे हैं उस समय के अर्थ)
आंखें खोलो और देखो
+
 
 +
आँखें खोलो और देखो
 
अभी तक आते हैं
 
अभी तक आते हैं
 
रोहिड़ों पर लाल फूल
 
रोहिड़ों पर लाल फूल
 
वर्षा ऋतु में हरियल होता है
 
वर्षा ऋतु में हरियल होता है
 
+
धरती का आँगन
धरती का आंगन
+
हरे होते हैं सूखे ठूँठ
हरे होते हैं सूखे ठूंठ
+
 
आज तक ।
 
आज तक ।
 
आकाश में अभी तक उगता है वह तारा
 
आकाश में अभी तक उगता है वह तारा
 
जिसे तुम बचपन में निहारा करते थे
 
जिसे तुम बचपन में निहारा करते थे
 
बाल कथाओं के बीच ।
 
बाल कथाओं के बीच ।
(अपने बच्चों की आखों में उगाओ वह तारा)
+
(अपने बच्चों की आँखों में उगाओ वह तारा)
उछलो बछड़ो की भांति
+
 
 +
उछलो बछड़ो की भाँति
 
सुनहरे धोरों पर जा कर
 
सुनहरे धोरों पर जा कर
 
कभी तो
 
कभी तो

11:35, 1 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

कभी तो भूलो
बच्चों को भूगोल पढ़ाना
हँसो गड़गड़ हँसी ।
हँसो !
जिससे बज उठें हिय के तार ।
पहली बारिश से जैसे पनपते हैं
वर्षों से सूखे-थार में पुष्प पल्लव ।

तुम्हारे हँसते ही
हँसने लगेगा
चूल्हे पर तपता तवा
और तवे पर सिकती हुई रोटी ।
तुम्हारे हँसते ही
खिल उठेंगे
बेलों पर फूल ।
खेजड़ों पर मिमंझर
और बच्चों की आँखों में भूगोल
(ज़रूरत नहीं रहेगी फिर तुम्हें भूगोल रटाने की)

कभी तो बनाओ
मन को चिड़िया
जंगल का विहाग
घर आँगन की गौरैया ।

उड़ो आकाश में
ऊँचे और ऊँचे
बताओ बच्चों को आकाश और
ऊँचाई का अर्थ ।
कभी ‘फ्लैट’ की पाँचवीं मंज़िल में
बच्चों के सामने बन जाओ ऐसे
जैसे हुड़दंग करते थे बचपन में
फससों और चौपालों पर ।

भूलो कभी तो कुछ ज़रूरी बातें
बदलो पुरानी पुस्तकों के पन्ने
पढ़ो वह आखर माल
जिसके नीचे कभी खींची थी लकीरें ।
(लकीरें जिनमें छुपे हैं उस समय के अर्थ)

आँखें खोलो और देखो
अभी तक आते हैं
रोहिड़ों पर लाल फूल
वर्षा ऋतु में हरियल होता है
धरती का आँगन
हरे होते हैं सूखे ठूँठ
आज तक ।
आकाश में अभी तक उगता है वह तारा
जिसे तुम बचपन में निहारा करते थे
बाल कथाओं के बीच ।
(अपने बच्चों की आँखों में उगाओ वह तारा)

उछलो बछड़ो की भाँति
सुनहरे धोरों पर जा कर
कभी तो
कभी तो वे काम भी करो
जिनको करने से डरने लगे हो
आजकल ।

अनुवाद : मोहन आलोक