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कभी देखे हैं? / कविता भट्ट

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कभी देखे हैं?
पतझड़ के बाद
नीला आकाश,
उँगली-पोर थामे
विश्वास भरी
वे कोंपलें-कलियाँ
और कौशल
खिलने-मुस्काने का;
कर रही हैं
संघर्ष प्रतिपल
अवश्य ही ये
खिलकर लिखेंगी
विजय -गाथा
और जीवन- पाती
असीम नभ
खींचता हैं इनको
निज बाहों में
देता है प्रतिपल
मुक्त आधार
बिना अनुबंध ही
जीवन-जय पथ ।