http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%88_%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9_%27%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%27&feed=atom&action=historyकभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा / अब्दुल्लाह 'जावेद' - अवतरण इतिहास2024-03-28T09:20:20Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%AD%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%88_%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9_%27%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%27&diff=151378&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अब्दुल्लाह 'जावेद' }} {{KKCatGhazal}} <poem> कभी ...' के साथ नया पन्ना बनाया2013-04-07T12:39:25Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अब्दुल्लाह 'जावेद' }} {{KKCatGhazal}} <poem> कभी ...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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|रचनाकार=अब्दुल्लाह 'जावेद'<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा<br />
बदलने में उसे दम भर लगेगा<br />
<br />
नहीं हो तुम तो घर जंगल लगे है<br />
जो तुम हो साथ जंगल घर लगेगा<br />
<br />
अभी है रात बाक़ी वहशतों की<br />
अभी जाओगे घर तो डर लगेगा<br />
<br />
कभी पत्थर पड़ेंगे सर के ऊपर<br />
कभी पत्थर के ऊपर सर लगेगा<br />
<br />
दर ओ दीवार के बदलेंगे चेहरे<br />
ख़ुद अपना घर पराया घर लगेगा<br />
<br />
चलेंगे पाँव उस कूचे की जानिब<br />
मगर इल्ज़ाम सब दिल पर लगेगा<br />
<br />
हम अपने दिल की बाबत क्या बताएँ<br />
कभी मस्जिद कभी मंदर लगेगा<br />
<br />
अगर तुम मारने वालों में होगे<br />
तुम्हारा फूल भी पत्थर लगेगा<br />
<br />
कहाँ ले कर चलोगे सच का परचम<br />
मुक़ाबिल झूट का लश्कर लगेगा<br />
<br />
हलाकू आज का बग़दाद देखे<br />
तो उस की रूह को भी डर लगेगा<br />
<br />
ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ<br />
ज़मीं का आसमाँ से सर लगेगा<br />
<br />
जो अच्छे काम होंगे उन से होंगे<br />
बुरा हर काम अपने सर लगेगा<br />
<br />
सजाते हो बदन बेकार ‘जावेद’<br />
तमाशा रूह के अंदर लगेगा</div>Sharda suman