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"कभी वो शाहसवारों की बात करता है / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

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जो दिन के वक़्त सितारों की बात करता है
 
जो दिन के वक़्त सितारों की बात करता है
  
मैं उसको शीश महल के सुनाता हूँ क़िस्से
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मैं उसको शीशमहल के सुनाता हूँ क़िस्से
 
वो अपनी टूटी दीवारों की बात करता है
 
वो अपनी टूटी दीवारों की बात करता है
  
वो बूढ़ा पेड़ कि जिस पार नहीं कोई पत्ता
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वो बूढ़ा पेड़ कि जिस पर नहीं कोई पत्ता
कि अब भी गुज़ारी बहारों की बात करता है
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कि अब भी गुज़री बहारों की बात करता है.
  
  
 
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16:34, 15 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

कभी वो शाहसवारों की बात करता है
कभी उदास कहारों की बात करता है

अज़ल के रिश्ते हों जिस शख़्स के तलातुम से
भला कहाँ वो किनारों की बात करता है

ज़रूर धूप का मारा हुआ बशर होगा
जो दिन के वक़्त सितारों की बात करता है

मैं उसको शीशमहल के सुनाता हूँ क़िस्से
वो अपनी टूटी दीवारों की बात करता है

वो बूढ़ा पेड़ कि जिस पर नहीं कोई पत्ता
कि अब भी गुज़री बहारों की बात करता है.