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कभी वो शाहसवारों की बात करता है / ज्ञान प्रकाश विवेक

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कभी वो शाहसवारों की बात करता है
कभी उदास कहारों की बात करता है

अज़ल के रिश्ते हों जिस शख़्स के तलातुम से
भला कहाँ वो किनारों की बात करता है

ज़रूर धूप का मारा हुआ बशर होगा
जो दिन के वक़्त सितारों की बात करता है

मैं उसको शीशमहल के सुनाता हूँ क़िस्से
वो अपनी टूटी दीवारों की बात करता है

वो बूढ़ा पेड़ कि जिस पर नहीं कोई पत्ता
कि अब भी गुज़री बहारों की बात करता है.