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कभी शेर-ओ-नगमा बनके / ख़ुमार बाराबंकवी

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कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढलके
वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरते बदलके

कि वफा की सख़्त राहे कि तुम्हारे पाव नाज़ुक
न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चलके

न तो होश से ताल्लुक न जूनू से आशनाई
ये कहाँ पहुँच गये हम तेरी बज़्म से निकलके