कभू केउ दिन-ले तोपाये रथे बादर-ह,
कभू केउ दिन-ले-झड़ी-ह हरि जाथे जी ।
सहे नहीं जाय, धुंका-पानी के बिकट मार,
जाड़ लगे, गोरसी के सुखा-ह-आथेजी ।।
ये बेरा में भूंजे जना, बटुरा औ बांचे होरा,
बने बने चीज-बस खाये बर भाथें जी ।
इन्दर धनुष के केतक के बखान करौ,
सतरङ्ग अकास के शोभा ला बढ़ाये जी ।