भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
 
''' कमबख्त हिन्दुस्तानी '''
 
आगे
थोड़ा और आगे
उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए
ज़मीन पर आँखें गडाए गड़ाए क्यों खडे खड़े हो
हाँ, हाँ, कोशिश करो
सिर उठाकर सामने देखो
शाबाश! देखो ही नहीं
क़दम भी आगे बढाओबढ़ाओ
ओह्! सिर दाएँ-बाएँ क्यों करने लगे
आह! फिर, वैसा ही करने लगे
खडे खड़े ही रहोगे
अरे बैठ भी गये
लेकिन, लेटना मत!