भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कमाल की औरतें २७ / शैलजा पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:58, 20 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब गौरैया निशाने पर है
अचूक है तुम्हारा निशाना

तुम एक-एक कर मारना उसे
आखिरी गौरैया को मार कर
उसका पंख रखना निशानी

जब अकाल पड़ेगा
जब नदी सूख जाएगी
जब फसल काले पड़ जायेंगे
जब भर जाएगी तुम्हारे आंखों में रेत

ज़िन्दगी ख़त्म होने के पहले
अपनी काली माटी में रोप देना वो रखा हुआ पंख
उसी में भरी थी उड़ान
उसके ƒघोंसले का पता
उसके बच्चे की भूख

वो धरती को मना लेगी
तुम्हें एक और बार जनेगी
और तुम बार-बार साधना निशाना
शिकारी हो तुम।