Last modified on 21 दिसम्बर 2015, at 15:03

कमाल की औरतें ३१ / शैलजा पाठक

हवा तेज़ भाग रही है
मन के अंधेरे रास्तों पर
एक उजली छत पर
एक अकेली लड़की
गा रही है
गोल-गोल ƒघूमती हुई
एक गीत

आंधी पानी दोष बुढिय़ा भरोस...

चांद पृथ्वी सब ƒघूम रहे हैं गोल-गोल

लड़की आज भी ƒघूम रही है
अपनी धुरी पर अकेली
जि़‹दगी ƒघर ब‘चे जदोजहद
दुनिया देख रही है

अब मन की अंधेरी सड़क पर
तेज आंधी है...डरावनी आवाज़ें
आहटों से तेज सांसें हैं।