Last modified on 20 दिसम्बर 2015, at 15:40

कमाल की औरतें ३३ / शैलजा पाठक

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 20 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पिंजरे के दरवाज़े पर
चिडिय़ा सर पटक ज़ख्मी
हो रही है
बेचैन हो लहूलुहान हो जाती है

अब तुम पास आओगे
बड़बड़ाओगे
उसके दरवाज़े पर बंधी रस्सी खोलोगे
छुओगे सहलाओगे

उपचार के लिए बाहर ले जाओगे
चिड़िय़ा नीला आसमान और परिंदा देखेगी
हवा और किरणों से अपने आंख सेकेगी
अपनी सांसों में भरेगी जीने की चाह

अब कुछ दिन चिड़िय़ा और जी पायेगी
ना जी पाई तो ज़ख्मी होकर
फिर आसमान देखने आएगी...।