देह की माटी पर
उगेंगे हरे पौधे
हवाओं की सीटियों से
कंपकपाएंगे नए पत्ते
थरथराती एक शाम
उकड़ू बैठेगी छांव तले
तुम धूप बन कर आना
मैं पेड़ की सबसे ऊंची फुनगी से गिरूंगी
बूंद बनकर
तुम्हारी हथेलियों में
तुम फिर माटी कर देना मुझे...।
देह की माटी पर
उगेंगे हरे पौधे
हवाओं की सीटियों से
कंपकपाएंगे नए पत्ते
थरथराती एक शाम
उकड़ू बैठेगी छांव तले
तुम धूप बन कर आना
मैं पेड़ की सबसे ऊंची फुनगी से गिरूंगी
बूंद बनकर
तुम्हारी हथेलियों में
तुम फिर माटी कर देना मुझे...।