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कयिसी चकल्लस आई! / पढ़ीस

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अब च्यातउ<ref>सजग हो</ref> कढ़िले काका, बिथरे कर पुरला झारउ!
जंगल की डुँड़ी-डँगरी, बाड़ी तक पूँछ उठायिनि!
अँउँघानी आँखी ख्वालउ,
अब बड़ी चकल्लस आई।
द्याखउ तउ तनुकु उकसि कयि, दुनिया कस पल्टा खायिस,
उयि लाटि<ref>लाट साहब</ref> कमहटर<ref>कमांडर, कमिश्नर</ref> बच्चा, खरगू ते खीस निप्वारयिं!
जब हमका बेदु पढ़ावहिं,
तब बड़ी चकल्लस आई।
बड़कये काँग्रेस वाले, पहिंदे गज्जी के ज्वाड़ा,
तुम अपना का पहिंचान्यउ, तबहे तुमका पहिंचानिनि,
यहि पर कुछु स्वाचउ समुझउ,
तउ बड़ी चकल्लस आई।
द्यााखउ तउ को-को आवयि, यी खगई के ख्यातन मा
चकिया म्यलवारि न होई ? जो देयि किसनऊ झाँसा।
तुम चितवउ चारिउ कयिती,
तउ बड़ी चकल्लस आई।
सब अपने-अपने मन मा, हयिं बइठ बसंतु बनाए,
स्यावा का सोंगु<ref>स्वाँग, नाटक</ref> सजाये पउढ़े घर पर तनियाए।
तुम सबकी कलई ख्वालउ।
हो, बड़ी चकल्लस आई।
तुमरे टुकरन के ऊपर सब व्वार मचा लतिहाउजु<ref>लत्तम-जूतम, जूतम पजार, अव्यवस्था</ref>
मुलु कोई कबहूँ जानिसि, यह किहिकी कयिसि तपस्या ?
सब हयि पढ़ीस के बच्चा,
बस बड़ी चकल्लस आई!

शब्दार्थ
<references/>