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कयिस-कयिस कनवजिया ह‍उ? / पढ़ीस

घर मा, बँभनन माँ, हिन्दुन मा, हिन्दुस्तानिन, संसार बीच
मरजाद का झंडा गाड़ि दिह्यउ, अब कयिस-कयिस कनवजिया हउ।
तुम बड़े पवित्र, पूर पण्डित, नस-नस मा दउरा असिल खून,
तुम खटकुल की खीसयि द्याखउ ? तुम अयिस बड़े कनवजिया हउ।
बहिनी, बिटिया कंगाल जाति की, तुमरे कारन पिसी जायि,
तुम सह्यब बने सभा मा भूल्यउ, कयिस, अयिस कनवजिया हउ।
पढ़ि-पढ़ि पूरे पथरा भे हउ, घर-घर मा जगुआ<ref>जागृति, जागरण, चेतना</ref> छायि रहा।
यी सयिति दिल्ली ते घाखति हयि, अयस बड़े कनवजिया हउ।
ध्वड़हा, उँटहा लदुआ किसान निज करमु करयि तउ तुम डहुँकउ,
अपनी बिरादरी का तूरति हउ, अयिस नीक कनवजिया हउ।
तुम दकियानूसी<ref>प्राचीनतम, पुरातन पंथी</ref> बतन भूल, देस-काल ते पाछे हउ,
तुम का गल्लिन का गिटई हँसती, अयिस खरे कनवजिया हउ।
तुम जस-जस चउका पर झगरय्उ, तस जाति बीच भमोलु भवा,
दादा, अब हे कुछु चेति जाउ, तुम कयिस कनवजिया हउ।

शब्दार्थ
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