भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"करक्वालै उड़ि गयीं / भारतेन्दु मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
 
तब लौ कुछु ते कुछ कीन चही
 
तब लौ कुछु ते कुछ कीन चही
 
कइसेव दाना परै ख्यात मा
 
कइसेव दाना परै ख्यात मा
हेय ठैलिम-ठेला।
+
होय ठेलिम ठेला।
  
 
नाते रिस्तेदार सबै हैं
 
नाते रिस्तेदार सबै हैं

08:57, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

करक्वालै उड़ि गयीं
बीति गै बरखा कै बेला
बूढ़े बरगद ते उठिगा है
चिरियन का मेला।

बीति रहा हमरिही द्याँह पर
आजु कुँवारी घाम
केतनौ ध्यान धरौ ई बेरा
हुइ-हुइ जाति जोखाम

कातिक आय रहा
लरिकउनू घूमै निकरि लिहिन
हमरे जिउ का डारि गये हैं
बोउनी कयार झमेला।

हाँथ पाँव मा जान नहीं है
हुइगेन ठवर-टक्करी
मुला काम की बेरिया है
घर बइठे, आखिर का करी?

जब लौ पौरुख है
तब लौ कुछु ते कुछ कीन चही
कइसेव दाना परै ख्यात मा
होय न ठेलिम ठेला।

नाते रिस्तेदार सबै हैं
लूटै का मुंहु बाए
राम-राम कइके दिन बीते
सेतुआ पिये-पियाए

अब बेसार का नाजु नहीं है
करजै लेक परी
आँसौं सूखा परा बचा ना
घर मा एकौ धेला।