Last modified on 2 मार्च 2015, at 15:45

करना तो है ज़िद्द्त का सफ़र देखिए क्या हो / महेश कटारे सुगम

करना तो है ज़िद्द्त का सफ़र देखिए क्या हो ।
अब हमने भी कस ली है कमर देखिए क्या हो ।।

हर रोज़ निगाहों में चमकता है आफ़ताब
इस ख़्वाब का उम्मीदे सफ़र देखिए क्या हो ।

मुझको ख़बर है वक़्त पै मेरे रफ़ीक भी
उगलेंगे रक़ीबों-सा ज़हर देखिए क्या हो ।

ये रात तीरगी से भरी काट दी मगर
अब आ गई है उजली सहर देखिए क्या हो ।

निकला है आज मौत का क़द नापने सुगम
है पास मुहब्बत का हुनर देखिए क्या हो ।