Last modified on 12 अगस्त 2014, at 11:18

करब कोन विधि हम अभिनन्दन। / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

करब कोन विधि हम अभिनन्दन।
हृदय-थारमे उपहृत अछि ई केवल भावक अक्षत-चन्दन।
ई लघु दीपक जरइत अनुखन,
दीपित करय सभक घर आङन,
महिमा - मण्डित पाहुन सभहिक
स्नेह दान लँ भेल आगमन,
विह्वला मन चाहय किछु गाबी, उमड़य भाव, किन्तु मुख छन्द न।
हृदय-थारमे उपहृत कयलहुँ केवल भावक अक्षत-चन्दन॥
सदय हृदय हो, मन निर्भय हो,
जीवन - पथपर रथ गतिमय हो,
बनल मनोबल रहय निरन्तर
मैथिलीक मुख तेजोमय हो
यहै कामना राखि हृदयमे सरस्वतीक करी पद वन्दन॥
ई विदेह जनपद विपन्न अछि,
कोटि कोटि जन से निरन्न अछि,
भाषा- भूषा संस्कृति सब किछु
आई मेल संकटापन्न अछि
नगर-नगर, रव-वन भटकै छथि लिखिओ पढ़ि वैदेही नन्दन।
हृदय थारमे करी समर्पित केवल भावक अक्षत-चन्दन॥