भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करिया बर कुसुन्नर, धिआ के अँगूठा छूऐ हे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> वेदिका पर वर-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वेदिका पर वर-कन्या को बैठाकर इस विधि को संपन्न किया जाता है। कन्या की ओर नाइन बैठती है। नाइन लोढ़े पर कन्या का अँगूठा रखती है। वर उसे पाँच बार उतारता है। इस विधि में वर द्वारा कन्या के पैर का स्पर्श कराकर वर का मजाक उड़ाया जाता है। कहीं-कहीं वर कन्या के अँगूठे का स्पर्श नहीं करता। तब यह विधि दूसरे के द्वारा संपन्न करा दी जाती है। इस विधि को संपन्न करते समय गाये जाने वाले इस गीत में दुलहे की कुरूपता और उसकी हीनता का उल्लेख करके उससे परिहास किया गया है।

करिया बर कुसुन्नर<ref>कुरूप</ref>, धिआ के अँगूठा छूऐ हे।
बाबा हो तोहें कवन बाबा, तोहें जतिया गँमवल्ह<ref>गँवाया</ref> हे।
ताहें टकबा गँमवल्ह हे।

शब्दार्थ
<references/>