करु दया जगदम्ब मो पर करु दया जगदम्ब!
छलहुँ सब एहि ठाम सूतल
भरत भूमि अवलम्ब,
उदय पर सब जागि ऊठल
आगु पाछु विलम्ब।
पारसी, बंगला, मराठा
गेल बढ़ि पथ लम्ब,
आलसी हम पाछु रहलहुँ
बेखबरि सकुटुम्ब।
चोर मिलि पुनि मोर लय गेल
सम्पदा निकुरम्ब
की कहब ककरा, सुनय के
चारि दिश दुख बम्ब।
देश तिरहुति विनय करइछ
सुनिय माँ हेरम्ब,
छाड़ि तुअ पद युगल दोसर
कोन अछि अवलम्ब?
करु दया जगदम्ब मो पर करु दया जगदम्ब।