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करूँ आज कैसे विदाई तुम्हारी / मृदुला झा

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कि डसने लगी है जुदाई तुम्हारी।

अगरचे दिये हैं कई जख्म तुमने,
करूँ कैसे मैं जग हँसाई तुम्हारी।

कहूँ हाल अपना मैं किस-किस से जाकर,
कि खलने लगी बेवफ़ाई तुम्हारी।

लगी हथकड़ी जो मुहब्बत की तुमको,
तो होगी कभी क्या रिहाई तुम्हारी।

बहारों का देखा जो दिलकश नज़ारा,
रुलाने लगी आशनाई तुम्हारी।