भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है
उसी का मर्तबा सब से बड़ा है

बुरे हालात में जो काम आए
उसे पूजो वो सचमुच देवता है

धुआं फैला है हर सू नफरतों का
मुहब्बत का परिंदा लापता है

न जाने हश्र क्या हो मंज़िलों का
यहाँ अंधों की ज़द पे रास्ता है

अगर हो साधना निष्काम अपनी
जहाँ ढूढ़ो वहीं मिलता ख़ुदा है

वहीं होती सदा सच्ची कमाई
जहाँ भी नेकियों का क़ाफ़िला है