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"करे सरकार अत्याचार तो जनता कहाँ जाये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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करे सरकार अत्याचार तो जनता कहाँ जाये
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मचा हो दिल में हाहाकार तो जनता कहाँ जाये
  
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हुकूमत है तुम्हारी तो तुम्हीं से ही तो पूछेंगे
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छिने जीने का गर अधिकार तो जनता कहाँ जाये
  
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हमारा देश है हम सब वतन में एक जैसे हैं
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करें अपने जो दुर्व्यवहार तो जनता कहाँ जाये
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चले आँधी हमारे रोकने से भी न रुक पाये
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उजड़ जाये अगर घरबार तो जनता कहाँ जाये
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इधर कश्ती  हुई  जर्जर उधर तूफान बिफरा है
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न होता हो जो बेड़ापार तो जनता कहाँ जाये
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पराये तो पराये हैं यहाँ अपने भी बेगाने
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मिले गर हर तरफ इन्कार तो जनता कहाँ जाये
 
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14:45, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

करे सरकार अत्याचार तो जनता कहाँ जाये
मचा हो दिल में हाहाकार तो जनता कहाँ जाये

हुकूमत है तुम्हारी तो तुम्हीं से ही तो पूछेंगे
छिने जीने का गर अधिकार तो जनता कहाँ जाये

हमारा देश है हम सब वतन में एक जैसे हैं
करें अपने जो दुर्व्यवहार तो जनता कहाँ जाये

चले आँधी हमारे रोकने से भी न रुक पाये
उजड़ जाये अगर घरबार तो जनता कहाँ जाये

इधर कश्ती हुई जर्जर उधर तूफान बिफरा है
न होता हो जो बेड़ापार तो जनता कहाँ जाये

पराये तो पराये हैं यहाँ अपने भी बेगाने
मिले गर हर तरफ इन्कार तो जनता कहाँ जाये