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|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
'''“करो भोर का अभिनन्दन'''रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’मत उदास हो मेरे मन करो भोर का अभिनन्दन !काँटों का वन पार कियाबस आगे है चन्दन-वन ।बीती रात ,अँधेरा बीताकरते हैं उजियारे वन्दन ।सुखमय हो सबका जीवन !<br>
आँसू पोंछो, हँस देनारामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’<br>धूल झाड़कर चल देना ।उठते –गिरते हर पथिक कोकदम-कदम पर बल देना ।मुस्काएगा यह जीवन ।मत उदास हो मेरे मन <br>
करो भोर का अभिनन्दन !<br> काँटों का वन पार किया<br> बस आगे है चन्दन-वन ।<br>बीती रात ,अँधेरा बीता<br> करते हैं उजियारे वन्दन ।<br> सुखमय हो सबका जीवन !<br>  आँसू पोंछो, हँस देना<br> धूल झाड़कर चल देना ।<br> उठते –गिरते हर पथिक को<br> कदम-कदम पर बल देना ।<br>मुस्काएगा यह जीवन ।<br> कलरव गूँजा तरुओं पर<br> नभ से उतरी भोर-किरन ।<br> जल में ,थल में, रंग भरे <br> सिन्दूरी हो गया गगन ।<br> दमक उठा हर घर-आँगन ।<br>
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