भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"करो भोर का अभिनन्दन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 +
}}
  
'''करो भोर का अभिनन्दन'''<br>
+
<Poem>
 +
मत उदास हो मेरे मन
 +
करो भोर का अभिनन्दन !
 +
काँटों का वन पार किया
 +
बस आगे है चन्दन-वन ।
 +
बीती रात ,अँधेरा बीता
 +
करते हैं उजियारे वन्दन ।
 +
सुखमय हो सबका जीवन !
  
'''रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’'''<br>
+
आँसू पोंछो, हँस देना
 
+
धूल झाड़कर चल देना ।
मत उदास हो मेरे मन <br>
+
उठते –गिरते हर पथिक को
 
+
कदम-कदम पर बल देना ।
करो भोर का अभिनन्दन !<br>
+
मुस्काएगा यह जीवन ।
 
+
कलरव गूँजा तरुओं पर
काँटों का वन पार किया<br>
+
नभ से उतरी भोर-किरन ।
 
+
जल में ,थल में, रंग भरे  
बस आगे है चन्दन-वन ।<br>
+
सिन्दूरी हो गया गगन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता<br>
+
दमक उठा हर घर-आँगन ।
 
+
</poem>
करते हैं उजियारे वन्दन ।<br>
+
 
+
सुखमय हो सबका जीवन !<br>
+
 
+
 
+
आँसू पोंछो, हँस देना<br>
+
 
+
धूल झाड़कर चल देना ।<br>
+
 
+
उठते –गिरते हर पथिक को<br>
+
 
+
कदम-कदम पर बल देना ।<br>
+
मुस्काएगा यह जीवन ।<br>
+
 
+
कलरव गूँजा तरुओं पर<br>
+
 
+
नभ से उतरी भोर-किरन ।<br>
+
 
+
जल में ,थल में, रंग भरे <br>
+
 
+
सिन्दूरी हो गया गगन ।<br>
+
 
+
दमक उठा हर घर-आँगन ।<br>
+

20:04, 6 जनवरी 2009 का अवतरण

मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन ।
सुखमय हो सबका जीवन !

आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना ।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना ।
मुस्काएगा यह जीवन ।
कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन ।
जल में ,थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन ।
दमक उठा हर घर-आँगन ।