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करो भोर का अभिनन्दन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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{{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

“करो भोर का अभिनन्दन रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ मत उदास हो मेरे मन करो भोर का अभिनन्दन ! काँटों का वन पार किया बस आगे है चन्दन-वन । बीती रात ,अँधेरा बीता करते हैं उजियारे वन्दन । सुखमय हो सबका जीवन !

आँसू पोंछो, हँस देना धूल झाड़कर चल देना । उठते –गिरते हर पथिक को कदम-कदम पर बल देना । मुस्काएगा यह जीवन ।

कलरव गूँजा तरुओं पर नभ से उतरी भोर-किरन । जल में ,थल में, रंग भरे सिन्दूरी हो गया गगन । दमक उठा हर घर-आँगन ।